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चार प्रकार के (आर्थिक) जीवन

संसार में जो भी मनुष्य है उन सभी का यहां बताए गए चार जीवन में से कोई ना कोई एक जीवन तो जरूर होता है। इन चार जीवन में से दो जीवन, एक सुखी जीवन और दूसरा हितकारी जीवन बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। और इनमें से दो जीवन, दु:खी जीवन और अहितकारी जीवन छोड़ने योग्य है उन्हें छोड़ देना चाहिए।

1) सुखी जीवन :

  • शारीरिक और मानसिक आरोग्यता वाला होता है।
  • सभी इंद्रियां स्वस्थ और बलवान होती है।
  • प्रत्येक कार्य को करने में समर्थ होता है।
  • पुरुषार्थ एवं पराक्रम से युक्त होता है।
  • कई प्रकार के ज्ञान-विज्ञान में कुशल होता है।
  • उत्तम संपत्ति अर्थात भौतिक साधन सुविधाओं से युक्त एवं सुशोभित होता है।
  • विविध प्रकार के ऐश्वर्य से संपन्न होता है।
  • जिसके सभी कार्य यथा संकल्प पूर्ण हो जाते हैं।
  • निर्बाध रूप से कहीं भी आने-जाने में समर्थ होता है।
  • अर्थात जिसके पास वर्तमान में उपलब्ध सभी प्रकार की भौतिक सुख सुविधाएं, उन भोगों को भोगने का सामर्थ्य , सभी प्रकार की अनुकूलताऐं एवं ऐश्वर्य से संपन्न होता है वह।

2) दु:खी जीवन :

  • शारीरिक और मानसिक रूप से दुर्बल और रोगी होना।
  • इंद्रियों का निस्तेज एवं रोगी होना।
  • कार्यों को करने में असमर्थ होना।
  • पुरुषार्थ, पराक्रम, उत्साह आदि गुणों से रहित होना।
  • ज्ञान-विज्ञान के विषय में मूर्ख होना।
  • संपत्ति आदि से रहित कुशोभित होना।
  • किसी भी प्रकार के साधन, सुविधाओं से रहित दरिद्र अवस्था में होना।
  • किसी भी कार्य का पूर्ण होना बहुत कठिन होना।
  • परिस्थितियों के आधीन, स्वयं की इच्छा से कुछ भी करने में असमर्थ अर्थात पराधीन होना।
  • अर्थात किसी भी प्रकार की भौतिक सुख, सुविधाओं से रहित एवं उन सुखों को प्राप्त करने के सामर्थ्य से रहित अनेकों प्रतिकूलताओं से ग्रस्त आर्थिक विपन्नता वाला होना।

3) हितकारी जीवन :

  • किसी भी परिस्थिति में धैर्यवान होना।
  • सभी कार्यों को सोच समझकर के करना।
  • हर परिस्थिति में शांति व्यवस्था बनाए रखना।
  • सभी प्रकार के व्यवहारों में सदा सावधान रहना।
  • सभी प्राणियों का शुभचिंतक एवं सबका भला चाहना।
  • विकट परिस्थिति में भी दूसरों के धन की इच्छा ना रखना।
  • सदा सम्मान के योग्य व्यक्तियों का सम्मान करना। अपनी इच्छा के अनुसार अपने मन के विकारों को वश में रखना।
  • सदा कुछ ना कुछ दान देने की प्रवृत्ति से युक्त होना।
  • कष्टों को सहन करके भी अपने कर्तव्य का पालन करना।
  • सदा वृद्धों की प्रेमपूर्वक सेवा करना।
  • स्मरण शक्ति का उत्तम होना।
  • सद्बुद्धि से युक्त होना।
  • अर्थात मन-वाणी-शरीर से श्रेष्ठ आचरण का ही करना।

4) अहितकारी जीवन :

  • धैर्य से रहित होना।
  • किसी भी कार्य को बिना सोचे समझे शीघ्रता से करना।
  • अशांत रहना और अव्यवस्था आदि उत्पन्न करना।
  • सदा लापरवाही करना।
  • स्वार्थी , लालची, लोभी होकर केवल अपने हित का ही सोचना।
  • सदा दूसरों के धन की इच्छा,कामना करना।
  • सम्मान के योग्य व्यक्तियों का सम्मान ना करना और दूर्जनों में प्रिय होना।
  • अपने मन के विकारों पर नियंत्रण ना होना।
  • दान आदि सद् प्रवृत्ति से रहित होना।
  • असहनशील होना।
  • बड़ों के प्रति असभ्य होना।
  • स्मरण शक्ति आदि बुद्धि के गुणों से रहित होना।
  • अर्थात मन-वाणी-शरीर से निदंनीय, असभ्य आचरण को करने वाला होना।