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दो एषणाओं की प्रधानता
हम सभी नितांत दु:खों से छूटकर पूर्ण सुख को प्राप्त करना चाहते हैं। इसी के चलते हमारी अनेकों प्रकार की इच्छाएं होती है। जैसे पत्नी, पुत्र, धन प्रतिष्ठान आदि का प्राप्त करना। उन्हें हम पूरा करना चाहते हैं।पर इनमें से दो इच्छाएं प्रमुख है, पहली प्राणेषणा ऑर दूसरी धनेषणा।
1) प्राणेषणा :
- प्राणों की एषणा अर्थात् प्राणों को चाहना, अर्थात् मेरे प्राण, मेरा जीवन सदा बना रहे। मुझे कभी किसी प्रकार की हानि, रोग आदि ना हो। यह शरीर ही इच्छाओं की पूर्ति का साधन है। अतः यह इच्छा प्रत्येक मनुष्य में चाहे वह किसी भी देश या विचारधारा का क्यों ना हो सभी में प्रबल रूप से विद्यमान रहती है।
2) धनेषणा :
- धन की इच्छा। हम सभी जानते हैं, छोटे से लेकर बड़े तक समस्त सांसारिक साधनों को प्राप्त करने का मुख्य साधन धन है। अतः दूसरे नंबर पर यह इच्छा आती है। पूरा संसार सुबह से लेकर रात तक जो भागदौड़ कर रहा है इसका कारण यह धन की इच्छा ही है। यदि बिना धन का लंबा और स्वस्थ जीवन मिल जाए तोभी कष्टों से भरा हुआ होता है। अतः धन से ही जीवन उपयोगी साधनों को जुटाया जा सकता है, धन ही भोगों को प्राप्त करने का मुख्य साधन है। इसलिए यह इच्छा भी हम सभी में प्रबल रूप से विद्यमान रहती है।